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जलाते चलो ये दीए स्नेह भर-भर
जलाते चलो ये दीए स्नेह भर-भरकभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा!
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
आशा और उद्योग-1
हा! हा! मुझसे कहो न क्यों तुम, आशा कभी न होगी पूर्णप्रतिफल इसकी नहीं मिलेगा, बैरी मान न होगा चूर्ण॥
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आशा और उद्योग-2
वृथा मुझे भय मत दिखलाओ, आशा से मत करो निराश।कुछ भी बल है युगुल भुजों में, तो बैरी होवेगा नाश॥